बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥२॥
हे पवनकुमार ! मैं आपका स्मरण करता हूँ। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सदबुद्धि, एवं ज्ञान दीजीए और मेरे दुःखो व दोषों का नाश कर दीजीए।