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HANUMAN CHALISA

HANUMAN CHALISA

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CHAUPAI 23

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।२३।।

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आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता। आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते हैं।

CHAUPAI 25

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ।।२५।।

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वीर हनुमानजी! आपका निरन्तर जप करने से सब रोग नष्ट हो जाते हैं और सब कष्ट दूर हो जाते हैं।

CHAUPAI 27

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा ।।२७।।

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तपस्वी राजा श्रीरामचन्द्रजी सबसे श्रेष्ठ हैं, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।

CHAUPAI 24

भूत पिशाच निकट नहिं आवैं।
महावीर जब नाम सुनावै।।२४।।

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हे पवनपुत्र आपका 'महावीर' हनुमानजी नाम सुनकर भूत-पिशाच आदि दुष्ट आत्माएँ पास भी नहीं आ सकती।

CHAUPAI 26

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।२६।।

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हे हनुमानजी विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में जिनका ध्यान आप में लगा रहता है, उनको सब दुःखों से आप दूर कर देते हैं।

CHAUPAI 28

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै।।२८।।

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जिस पर आपकी कृपा हो, ऐसा जीव कोई भी अभिलाषा करें तो उसे तुरन्त फल मिल जाता है, जीव जिस फल के विषय में सोच भी नहीं सकता वह मिल जाता है अर्थात् सारी कामनायें पूरी हो जाती हैं।

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CHAUPAI 29

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।२९।।

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आपका यश चारों युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग) में फैला हुआ है, सम्पूर्ण संसार में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।

CHAUPAI 31

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।३१।।

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हे हनुमंत लालजी आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी "आठो सिद्धियां" और "नौ निधियां" (सब प्रकार की सम्पत्ति) दे सकते हैं।

CHAUPAI 33

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै ।।३३।।

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आपका भजन करने से श्रीरामजी प्राप्त होते हैं और जन्म-जन्मांतर के दुःख दूर हो जाते हैं।

CHAUPAI 30

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।३०।।

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हे श्रीराम के दुलारे! आप साधु और सन्तों तथा सज्जनों की रक्षा करते हैं तथा दुष्टों का सर्वनाश करते हैं।

CHAUPAI 32

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।३२।।

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आप निरन्तर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास वृद्धावस्था और असाध्य रोगों के नाश के लिए "राम-नाम" रूपी औषधि है।

CHAUPAI 34

अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।३४।।

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अन्त समय श्री रघुनाथजी के धाम को जाते हैं और यदि फिर भी मृत्युलोक में जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्रीराम भक्त कहलायेंगे।

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